Posted on 02 July 2010 by admin
सुल्तानपुर – सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 05 के अन्तर्गत बिजली विभाग ने करोड़ो के घपले का खुलासा करने की मांग की गई है, जिसमे विनय कुमार अधिशाशी अभियन्ता, एसडीओ आर0एस0 माथुर, अधिशाशी अभियन्ता के उपर आरोप लगाते हुए सूचना मांगी गई है कि 27 अप्रैल 06 को बुक नं0 038963, 21मार्च 2007 बुक नं0 22415, 19 मई 2007 बुक नं0 22919 व 22920, 30 जुलाई 2007 बुक नं0 23419, 23420 व 23421 के माध्यम से अधिशाशी अभियन्ता प्रभात मोगां की मौजूदगी में लगभग 22 लाख रूपया जनता से वसूल किया गया। उक्त धन राशि कब और किस तिथि में तथा किस बैक में जमा किया गया इसका व्यौरा मीड़िया को तत्काल उपलब्ध कराने की मांग की है। डा0 बीसी मिश्र सम्पादक सोना सन्देश विद्युत विभाग के अधिकारी के उपर आरोप लगाते हुए कहा कि राश्ट्रपति, गृहमन्त्री, सांसद राहुल गांधी अमेठी, मुख्य मन्त्री उ0प्र0, उर्जा मन्त्री उ0प्र0 को भी उक्त मामले में फैक्स द्वारा अवगत कराया।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com
Posted on 22 May 2010 by admin
नई दिल्ली – सूचना के कानून से जुड़े एक मामले में डीडीए उपाध्यक्ष के खिलाफ दिए आदेश पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने हदें पार की हैं। जस्टिस बदर दुरेज अहमद और जस्टिस वीना बीरबल की बेंच ने शुक्रवार को दिए एक अहम फैसले में कहा कि जिस कानून ने केंद्रीय सूचना आयोग और उसके मुख्य सूचना आयुक्त को जन्म दिया, उसी का उल्लंघन इस मामले में देखने में आया है। सीआईसी और मुख्य आयुक्त ने शक्तियों की सीमा लांघा है। अदालत ने डीडीए उपाध्यक्ष के उपस्थित न होने पर सीआईसी द्वारा सितंबर, 2009 में दिए आदेश को दरकिनार करते हुए कहा कि डीडीए उपाध्यक्ष के न पहुंच पाने का प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है। हाईकोर्ट ने सीआईसी द्वारा बेंच बनाकर सुनवाई करने को भी एक्ट की परिधि से बाहर की बात बताया है।
डीडीए के स्थाई अधिवक्ता अजय वर्मा ने दलील दी थी कि सीआईसी न तो हाईकोर्ट जैसी शक्तियां रखता है और न सुप्रीम कोर्ट जैसी, जिसमें कि किसी भी व्यक्ति को पेश होने का आदेश दिया जा सके। अदालत ने कहा कि सीआईसी किसी मामले की सुनवाई के दौरान व्यक्ति को मौखिक या लिखित बयान देने अथवा दस्तावेज पेश करने के लिए ही बुला सकती है। डीडीए उपाध्यक्ष को उनके पास मौजूद किसी दस्तावेज को पेश करने के लिए समन नहीं किया गया। उन्हें मौके पर किसी और वजह से उपस्थित होने को कहा गया और ये सीआईसी को नहीं मिला है। अदालत ने सीआईसी द्वारा डीडीए के सभी विभागों में लंबित आरटीआई मामलों की जांच के लिए 22 सितंबर, 09 को समिति बनाने के आदेश को भी दरकिनार कर दिया। सीआईसी ने आदेश दिया था कि केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय की निदेशक सुजाता चतुर्वेदी समेत एनजीओ हैजार्डस सेंटर से दूनो रॉय और आयोग के संयुक्त रजिस्ट्रार केपी श्रेयस्कर की समिति 45 कार्य दिवसों में जांच रिपोर्ट सौंपे। आरटीआई आवेदक सर्वजीत राय ने शिकायत की थी कि डीडीए में सूचना अधिकार कानून का अनुपालन ठीक ढंग से नहीं होता है।
Posted on 21 May 2010 by admin
शिमला में राष्ट्रीय लेखा एवं लेखा परीक्षा अकादमी के डायमंड जुबली समारोह के अवसर पर उपराष्ट्रपति डॉ. हामिद अंसारी ने कहा है कि आरटीआई एक्ट के अधीन आने वाली सभी संस्थाओं, एनजीओ, सोसाइटी और ट्रस्ट को भी कैग के ऑडिट के दायरे में लाया जाना चाहिए। वर्तमान में 1971 एक्ट के तहत इन सभी संस्थाओं को कैग के ऑडिट के तहत लाए जाने का प्रावधान नहीं है। पब्लिक ऑडिट की प्रकिया में कई सुधार किए जाने की आवश्यकता अभी भी महसूस की जा रही है।
डॉ. अंसारी ने कहा कि ऑडिट प्रक्रिया में कई ऐसी खामियां हैं, जिन्हें दूर किया जाए तो जनता को सुशासन मुहैया कराया जा सकता है। अभी कैग के पास ऐसा अधिकार नहीं है, जिससे वह राजस्व को नुकसान पहुंचाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को समन जारी करते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई कर सके। कैग के अधीन ऐसी संवैधानिक बॉडी का गठन किया जाना चाहिए जिसके पास ऐसे अधिकार निहित हों।
डॉ. अंसारी ने कहा कि कोई भी संस्था जो सूचना के अधिकार के दायरे में आती है, उसे कैग के ऑडिट के अधीन भी लाया जाना चाहिए। पब्लिक ऑडिट का उद्देश्य तभी पूरा हो सकता है, जब रिकॉर्ड को निर्धारित समयसीमा में बिना बाधा के मुहैया कराया जाता है।
Posted on 26 March 2010 by admin
सूचना आयोग ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के अधिकारी पर 25,000 रुपये का जुर्माना किया। अधिकारी ने का मांगी गई सूचना का जवाब देने में देरी की थी।
शिव बाबू की ओर से यह याचिका पिछले वर्ष 15 अक्टूबर को दायर की गई थी। शिव बाबू पकड़े गए अवैध साइकिल रिक्शों की संख्या और दिल्ली नगर निगम के रिक्शा विभाग में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या के बारे में जानकारी चाहते थे। दिल्ली नगर निगम के जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) ने इस याचिका पर एम.सी.डी. एक अधिकारी महेश शर्मा से मदद मांगी। शर्मा ने 18 जनवरी 10 को सूचना उपलब्ध कराई और वह भी अधूरी सूचना।
जन सूचना सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने अपने आदेश में कहा है आयोग ने शर्मा से देरी का कारण जानना चाहा तो एम.सी.डी. अधिकारी ने कहा कि वह बहुत व्यस्त हैं और उन्हें अवैध रिक्शों को पकड़ने के लिए क्षेत्र में भी जाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि उन्हें इस काम के प्रबंधन के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं थी। उन्होंने यह भी कहा कि उनके पास कर्मचारियों की कमी थी। सूचना आयुक्त ने समय से सूचना उपलब्ध न कराये जाने पर 25,000 रुपये का जुर्माना देने का आदेश दिया।
जन सूचना अधिकार कानून के अनुसार 30 दिनों के भीतर सूचना उपलब्ध करा दी जानी चाहिए। वैध कारणों से यह अवधि 30 दिनों के बदले बढ़ा कर 45 दिन की जा सकती है।
Posted on 24 March 2010 by admin
नई दिल्ली – आरटीआई याचिका के जवाब पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस मामले में सूचना गोपनीय है। कोर्ट ने इससे पहले इस बात से इनकार किया था कि सीबीआई ने मामले में प्रधान न्यायाधीश से संपर्क किया था।
अभिषेक शुक्ला की ओर से दायर याचिका में यह जानकारी मांगी गई थी कि मामले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति निर्मल यादव पर मुकदमे की अनुमति के लिए सीबीआई ने देश के प्रधान न्यायाधीश से संपर्क किया था या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट के केन्द्रीय जन सूचना अधिकारी राजपाल अरोरा ने आरटीआई जवाब में कहा कि आपके द्वारा मांगी गई जानकारी गोपनीय है और इसे सूचना का अधिकार कानूनए 2005 की धारा 8 (1) के तहत उजागर करने से छूट प्राप्त है। अरोरा ने कहा कि यह जानकारी सी.पी.आई.ओ, सुप्रीम कोर्ट भारत के नियन्त्रण में नहीं है। इस जवाब को सर्वोच्च न्यायालय के महासचिव एमपी भद्रन द्वारा पहले जारी एक बयान का करारा जवाब माना जा रहा है,जिसमें उन्होंने कहा था कि सीबीआई ने मामले में प्रधान न्यायाधीश से संपर्क नहीं किया।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की न्यायाधीश निर्मलजीत कौर के आवास पर 15 लाख रुपये से भरा बैग पहुंचने के बाद इस कथित घोटाले में न्यायमूर्ति निर्मल यादव का नाम आया था। कहा जा रहा था कि नामों के सन्देह में यह बैग वहां पहुंचा दिया गया। न्यायमूर्ति कौर ने मामले की खबर पुलिस को दी थी। बाद में चण्डीगढ़ प्रशासन के आदेश पर मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी। प्रधान न्यायाधीश ने मामले में निगरानी के लिए तीन न्यायाधीशों की एक समिति गठित की थी। खबरों के मुताबिक तत्कालीन अटार्नी जनरल मिलन बनर्जी ने कानून मन्त्रालय को सलाह दी थी कि मामले में आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं है। सीबीआई की एक कोर्ट ने कहा था कि जांच एजेंसी ने मुकदमा शुरू करने के लिए भारत के प्रधान न्यायाधीश से मंजूरी नहीं मिलने के बाद समाप्ति रिपोर्ट दाखिल की है। इस
Posted on 19 March 2010 by admin
देहरादून -राज्य सूचना आयोग ने प्रदेश के सभी प्रशासनिक अधिकारियों को सूचनाधिकार की प्रथम अपील की सुनवाई न्यायालय की कार्यवाही की तरह करने के निर्देश दिए हैं। विभागीय अपील की सुनवाई के तौर तरीकों से खफा मुख्य सूचना आयुक्त डा. आर.एस टोलिया ने इस मामले में सचिव सामान्य प्रशासन को प्रदेश के सभी मंडलायुक्तों, जिलाधिकारियों, उपजिलाधिकारियों, तहसीलदारों आदि को निर्देश जारी करने के आदेश दिए हैं।
सूचनाधिकार के एक प्रकरण में आयोग ने कहा है कि इन अधिकारियों द्वारा जिस तरह अन्य अधिनियमों के तहत वादों व अपीलों की सुनवाई होती है, उसी तरह सार्वजनिक वाद सूची नोटिस बोर्ड पर समय व दिनांक तय करते हुए प्रदर्शित की जाए।
दून निवासी एक व्यक्ति ने अगस्त 2009 में जिला सूचना अधिकारी कार्यालय से पिछले साल डी.एम कार्यालय के स्टाफ के हड़ताल व उसमें शामिल कर्मियों के बारे में अनेक जानकारियां मांगी। उन्होंने तंबाकू उत्पादों के विज्ञापनों पर रोक से जुड़ी जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित कमेटी की ओर से की गई अब तक की कार्रवाई और समाचार पत्रों, चैनलों को दिए गए निर्देशों के बारे में भी जानकारी मांगी। जब उन्हें तंबाकू संबंधी सूचना नहीं मिली तो उन्होंने जिलाधिकारी से प्रथम अपील की। निस्तारण से असंतुष्ट होकर उन्होंने सूचना आयोग में अपील कर दी। सुनवाई का दिन तय हो जाने के बावजूद उन्हें सूचना नहीं मिली।
आयोग ने इस मामले में प्रथम विभागीय अपील की सुनवाई के प्रति असंतोष व्यक्त किया और कहा कि जब कार्यवाही जारी हो तो लोक सूचना अधिकारी को इसकी जानकारी अपीलार्थी को भी देनी चाहिए। आयोग ने विभागीय अपील अधिकारी यानी जिलाधिकारी को निर्देश दिए हैं कि वह अपने कोर्ट की कार्यवाही की तरह गंभीरता से सूचना अधिकार की प्रथम अपील की सुनवाई करें।
Posted on 13 March 2010 by admin
Posted on 11 March 2010 by admin
सूचना के अधिकार को लेकर मचाए जा रहे हो हल्ले के बीच सरकार के आला अफसर सूचना देने में भी गलियां निकालने में लगे हैं। जोधपुर के एक आवेदक ने प्रमुख शासन सचिव (पीएचईडी) से आरटीआई के तहत कुछ जानकारी मांगी थी। उसे पांच माह तक तो टरकाया जाता रहा। बाद में कहा गया कि वह कार्यालय में आकर बताए कि उसे क्या सूचना चाहिए। दरअसल, शहर के सरदारपुरा निवासी एनएल व्यास ने २६ सितंबर 0९ को आरटीआई के तहत लोक सूचना अधिकारी एवं प्रमुख शासन सचिव, पीएचईडी, जयपुर को आवेदन भेजा था। इसमें विभागीय पदोन्नति प्रक्रिया सहित पांच जानकारियां मांगी थी। इस आवेदन पर शासन उप सचिव (प्रथम) ने 16 अक्टूबर को जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग जयपुर के मुख्य अभियंता (मुख्यालय) को वांछित सूचनाएं अविलंब उपलब्ध करवाने व विभाग को सूचित करने के निर्देश दिए।
इस पत्र को दो माह से अधिक समय तक फाइल में रखने के बाद मुख्य अभियंता (मुख्यालय) कार्यालय की ओर से अतिरिक्त मुख्य अभियंता (शहरी) जन स्वा. अभि. विभाग ने 22 दिसंबर को पत्र भेजा। इसमें कहा किया गया ‘प्रार्थी द्वारा चाही गई आंशिक सूचना तकनीकी सदस्य एवं तकनीकी सहायक-प्रथम से प्राप्त हो गई है। बिन्दु संख्या 2, 3, 4, 5 की सूचना प्रशासनिक विभाग से संबंधित होने के कारण प्रार्थी का पत्र आपको सूचना भेजने के लिए प्रेषित किया जा रहा है। आप शीघ्र सूचना उपलब्ध करावें, जिससे प्रार्थी को सूचना उपलब्ध करवाई जा सके।’ इसके करीब तीन माह बाद प्रमुख शासन सचिव, पीएचईडी कार्यालय को इस पत्र की याद आई। शासन उप सचिव (प्रथम) ने 3 मार्च 2010 को एक पत्र प्रार्थी को भेजते हुए लिखा कि संदर्भित आवेदन पत्र 26.09.09 द्वारा चाही जा रही सूचना स्पष्ट नहीं है। कृपया किसी कार्यालय दिवस में उपस्थित होकर वांछित सूचना स्पष्ट कर, प्राप्त करें।