नई दिल्ली – सूचना के कानून से जुड़े एक मामले में डीडीए उपाध्यक्ष के खिलाफ दिए आदेश पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने हदें पार की हैं। जस्टिस बदर दुरेज अहमद और जस्टिस वीना बीरबल की बेंच ने शुक्रवार को दिए एक अहम फैसले में कहा कि जिस कानून ने केंद्रीय सूचना आयोग और उसके मुख्य सूचना आयुक्त को जन्म दिया, उसी का उल्लंघन इस मामले में देखने में आया है। सीआईसी और मुख्य आयुक्त ने शक्तियों की सीमा लांघा है। अदालत ने डीडीए उपाध्यक्ष के उपस्थित न होने पर सीआईसी द्वारा सितंबर, 2009 में दिए आदेश को दरकिनार करते हुए कहा कि डीडीए उपाध्यक्ष के न पहुंच पाने का प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है। हाईकोर्ट ने सीआईसी द्वारा बेंच बनाकर सुनवाई करने को भी एक्ट की परिधि से बाहर की बात बताया है।
डीडीए के स्थाई अधिवक्ता अजय वर्मा ने दलील दी थी कि सीआईसी न तो हाईकोर्ट जैसी शक्तियां रखता है और न सुप्रीम कोर्ट जैसी, जिसमें कि किसी भी व्यक्ति को पेश होने का आदेश दिया जा सके। अदालत ने कहा कि सीआईसी किसी मामले की सुनवाई के दौरान व्यक्ति को मौखिक या लिखित बयान देने अथवा दस्तावेज पेश करने के लिए ही बुला सकती है। डीडीए उपाध्यक्ष को उनके पास मौजूद किसी दस्तावेज को पेश करने के लिए समन नहीं किया गया। उन्हें मौके पर किसी और वजह से उपस्थित होने को कहा गया और ये सीआईसी को नहीं मिला है। अदालत ने सीआईसी द्वारा डीडीए के सभी विभागों में लंबित आरटीआई मामलों की जांच के लिए 22 सितंबर, 09 को समिति बनाने के आदेश को भी दरकिनार कर दिया। सीआईसी ने आदेश दिया था कि केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय की निदेशक सुजाता चतुर्वेदी समेत एनजीओ हैजार्डस सेंटर से दूनो रॉय और आयोग के संयुक्त रजिस्ट्रार केपी श्रेयस्कर की समिति 45 कार्य दिवसों में जांच रिपोर्ट सौंपे। आरटीआई आवेदक सर्वजीत राय ने शिकायत की थी कि डीडीए में सूचना अधिकार कानून का अनुपालन ठीक ढंग से नहीं होता है।