वर्ष 2001 से 2011 में भारतीय सेंसर बोर्ड द्वारा कुल 256 फिल्मों को
प्रदर्शन की अनुमति देने से मना किया गया. इनमे एक वर्ष मे 2006 में
सर्वाधिक 59 फ़िल्में प्रतिबंधित की गयी, जबकि 2002 में 33 तथा 2004 में
31 फिल्मों को सेंसर बोर्ड द्वारा प्रदर्शन की अनुमति नहीं मिली. 2010
में सबसे कम नौ फिल्मों पर सेंसर बोर्ड की रोक लगी. 2001 में जिन 19
फिल्मों पर रोक लगीं वे सभी अंग्रेजी फ़िल्में थीं.
लखनऊ स्थिति आरटीआई कार्यकर्ता अमिताभ एवं नूतन ठाकुर द्वारा सेंसर बोर्ड
से प्राप्त सूचना के अनुसार इस अवधि मे सर्वाधिक 78 हिंदी फिल्मों को
अनुमति नहीं मिली जबकि 52 अंग्रेजी फ़िल्में भी प्रदर्शन से रोकी गयीं.
दक्षिण भारतीय भाषाओँ में 51 तमिल, 33 कन्नड़, 15 तेलुगु तथा 14 मलयालम
फिल्मों पर सेंसर बोर्ड की रोक लगी जबकि ऐसी 5 मराठी फ़िल्में थीं. इस
अवधि में मात्र एक बंगाली फिल्म (2011- काल आज काल) और 1 गुजराती फिल्म
(2010- हूँ रे विजोगन तारा नाम की) पर सेंसर बोर्ड की रोक लगी जबकि 2006
में दो भोजपुरी फ़िल्में (गर्दा-गर्दा हो जाए, मुंबई बम विस्फोट कांड) और
दो हरयाणवी फ़िल्में (जीजा तेरे टांग का और पड़ोसन थानेदार) रोकी गयीं थीं.
अनुमति नहीं मिलने वाली अधिकतर फ़िल्में सेक्स विषयों पर आधारित हैं. इनमे
फ्रिवलस लोला (2001), आदमखोर हसीना, कातिल शिकारी, खूनी रात (2002),
आलिंगनम (मलयालम-2002), बीवी तुम्हारी बच्चे हमारे (2003), योग टीचर,
दिव्या टीचर (तमिल- 2003), आग है ये बदन (हिंदी- 2004), भूख, जो अंदर
फिट वो बाहर भी हिट (2005), मा निनेल्लो नानाल्ले (कन्नड़), प्रीथिया,
रम्भा (कन्नड़-2006), हुस्न बेवफा, सनम हरजाई (2006), मॉडल (कन्नड़-2007),
मादोशा (कन्नड़- 2008), बेधेरेंचा बयांगाराम )(तेलुगु- 2008), बैक टू
हनीमून (2009), थी, नालई नामडे (तमिल- 2009), मेसट्रू (कन्नड़- 2009), देव
लीलई (तमिल), यार, कत्तुपुली, इतुम्बू (तमिल) शामिल हैं.
इससे अलग फिल्मों मे द इरेप्युटेबल ट्रुथ अबाउट डेमन (न्यूजीलैंड की हॉरर
फिल्म), द मेक्सिकन (गोर वर्बिन्सकी निर्देशित ब्रैड पिट, जुलिया
रोबर्ट्स अभिनीत 2001 की अमेरिकन कामेडी) तथा राहुल ढोलकिया निर्देशित
गुजरात दंगों पर आधारित परजानिया (2005-अंग्रेजी, गुजराती) शामिल हैं.
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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