Posted on 22 April 2010 by admin
एनटीएडीसीएल सूचना-अधिकार के दायरे में : मद्रास उच्च न्यायालय
हाल ही में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप परियोजना से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसले में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा न्यू तिरुपुर एरिया डिवेलपमट कार्पोरेशन लिमिटेड, (एनटीएडीसीएल) की याचिका खारिज कर दी गई है। कंपनी ने यह याचिका तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग के उस आदेश के खिलाफ दायर की थी जिसमें आयोग ने कंपनी को मंथन अध्ययन केन्द्र द्वारा मांगी गई जानकारी उपलब्ध करवाने का आदेश दिया था।
एक हजार करोड़ की लागत वाली एनटीएडीसीएल देश की पहली ऐसी जलप्रदाय परियोजना थी जिसे प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत मार्च 2004 में प्रारंभ किया गया था। परियोजना में काफी सारे सार्वजनिक संसाधन लगे हैं जिनमें 50 करोड़ अंशपूजी, 25 करोड़ कर्ज, 50 करोड़ कर्ज भुगतान की गारंटी, 71 करोड़ वाटर शार्टेज फंड शामिल है। परियोजना को वित्तीय दृष्टि से
–सिराज केसर
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Posted on 17 April 2010 by admin
लखनऊ- अमिताभ ठाकुर अध्यक्ष, नेशनल आर0टी0आई0 फोरम ने बताया है कि नेशनल आर0टी0आई0 फोरम द्वारा सभी भारतीय प्रबंध संस्थानों (आई0आई0एम0) के आर0टी0आई0 सम्बंधित वेबपृश्ठों को देखे जाने पर एक बात जो हर जगह अनुपस्थित मिली वह यह कि इनमें से किसी भी संस्थान द्वारा अपने यहॉ सहायक प्रोफेसर, एसोशियेट प्रोफेसर तथा प्रोफेसर पद से सम्बंधित न्यूनतम अह्रतायें नहीं दी गई हैं। साथ ही इन पदों पर चयन की प्रक्रिया एवं नियमावली का भी कहीं उल्लेख नहीं है। ये ऐसे तथ्य हैं जिनके सम्बंध में जानकारी आम नागरिक को दिये जाने से इनकी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता बढ़ने में सहायता मिलेगी। इस सम्बंध में विशेशकर आई0आई0टी0 कानपुर के बेवसाइट www.iitk.ac.in का उल्लेख किया जा सकता है जिसके डीन ऑफ फैकल्टी एफेयर्स वेबपेज www.iitk.ac.in/dofa पर अत्यन्त विस्तार से इनके विवरण प्रस्तुत किये गये हैं।
इसके अतिरिक्त आई0आई0एम0 लखनऊ के वेबसाइट में यह पाया गया है कि यह कई स्थानों पर अपूर्ण है। कर्मियों के अधिकार तथा कर्तव्य शीर्षक के अंर्तगत मात्र इतना लिखा हुआ है कि एमओए के अनुसार। किन्तु इसके साथ संचालक सोसायटी के मेमारेन्डम ऑफ अण्डरस्टैण्डिंग तथा नियमावलि संलग्न नहीं हैं। नीति (नार्म) शीर्षक के अन्तर्गत लिखा गया है- भारत सरकार तथा संस्थान द्वारा बनाये गये नीति (नार्म) के अनुसार किन्तु इन नियमों का प्रस्तुतिकरण नहीं है। नियम, विनियम, अनुदेश तथा निर्देश शीर्षक के अधीन खरीदारी मैनुअल जैसे कई अभिलेखों का उल्लेख है तथा यह कहा गया है कि संस्थान के वेवसाइट www.iiml.ac.in पर विस्तृत जानकारी प्राप्त होगी पर संस्थान के साइट पर इनमें से कई अभिलेख नहीं हैं।
सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 4 (1) के अनुसार सभी लोक अधिकारियों से यह अपेक्षित है कि इस अधिनियम के पारित होने के 120 दिनों के अन्दर सारी आवश्यक सूचनायें कम्प्यूटरिकृत करके सर्वसामान्य के लिये सुलभ कर देंगे तथा धारा 4 (2) के अनुसार लोक प्राधिकारी का यह उत्तरदायित्व है कि वह लगातार यह प्रयत्न करे कि वह इंटरनेट तथा अन्य माध्यमों से अधिक से अधिक सूचनायें इस प्रकार उपलब्ध करा दे कि आम जन को सूचना का अधिकार अधिनियम का कम से कम उपयोग करने की आवश्यकता हो। ऐसा प्रतीत होता है कि इन प्रकरणों में उपरोक्त नियमों के अनुपालन में कई रिक्तियॉ हैं। आर0टी0आई0 फोरम द्वारा अहमदाबाद, बंगलूरू, कोलकाता, लखनऊ , इन्दौर, कोजिकोड तथा शिलांग स्थित इन संस्थानों तथा मानव संसाधन विकास मन्त्रालय को इस सम्बंध में अवगत कराया गया है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com
Posted on 13 April 2010 by admin
लखनऊ।भारतीय प्रबंध संस्थान, लखनऊ द्वारा संस्थान के पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम दाखिले की प्रक्रिया में भारी फेरबदल की बात बतायी जा रही है। प्राप्त जानकारी के अनुसार अब साक्षात्कार तथा ग्रुप डिसकसन हेतु तैयार किये गये टीम के सदस्यों के नाम दूसरे सदस्य परस्पर नहीं जान सकेंगे। कहा जा रहा है कि ऐसा होने पर पूरी प्रक्रिया कम पारदशीZ तथा अपनी सुविधाओं के अनुसार संचालित करने योग्य बन गई है जिसमें कभी भी टीम के सदस्य बदले जा सकते हैं। साथ ही अब अभ्यर्थियों को जी0डी0 तथा साक्षत्कार में दिये जा रहे अंकों का नियम भी परिवर्तित कर दिया गया है। पहले ये अंक परीक्षक टीम द्वारा मौके पर ही दिये जाते थे पर नये नियम के अनुसार अब सारी कापियॉ तथा दस्तावेज एकत्र कर संस्थान में लाये जायेंगे तथा इनका केन्द्रीय स्तर पर परीक्षण होगा। जानकारों का कहना है कि इस व्यवस्था में गड़बड़ी करना आसान हो जाता है जहॉ अन्त में सुविधानुसार अभ्यर्थियों के अंक कम या ज्यादा किये जा सकते है।
ये जानकारी नेशनल आर0टी0आई0 फोरम को मिली हैं। आर0टी0आई0 फोरम की ओर से इन पर गम्भीरता से ध्यान देते हुये अनुपम पाण्डेय द्वारा भारतीय प्रबंध संस्थान, लखनऊ के जन सूचना अधिकारी द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत सूचनायें मांगी गई हैं। साथ ही फोरम द्वारा मानव संसाधन मन्त्रालय से भी इस गम्भीर विशय पर तत्काल न्यायोचित कार्य करने हेतु पत्राचार किया गया है।
डा0 नूतन ठाकुर,
कनवेनर,
नेशनल आर0टी0आई0 फोरम, ने ये जानकारी द ी हैं।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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Posted on 12 April 2010 by admin
लखनऊ – सूचना आयोग अगर शिकायतकर्ता को तीस दिनों के अन्दर उसकी शिकायत पर सूचना नहीं देता है या उसको राहत देने में विफल रहता है तो सूचना का अधिकार का औचित्य ही समाप्त हो जाएगा। अगर सरकार इस अधिनियम के त्वरित क्रियान्वयन के प्रति गम्भीर है तो उसे निगरानी प्रणाली का सहारा लेना पड़ेगा। वैसे भी इस अधिनियम की धारा 25 के अन्र्तगत निगरानी प्रणाली की व्यवस्था भी की गई है लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण यह बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रहा है।
एक्शनग्रुप फॉर पीपुल्स राईट टू इन्फार्मेशन के छठवें राष्ट्रीय सम्मेलन एवूं कार्यशाला में “सूचना का अधिकार अधिनियम 2005: क्रियान्वयन, समस्याएं एवं समाधान´´ विषय पर आज यहां एनबीआरआई सभागार में वक्ताओं ने उक्त विचार व्यक्त किए। इस कार्यशाला में 200 से अधिक एन जी ओ और भूतपूर्व न्यायमूर्ति कमलेश्वर नाथ, न्यायमूर्ति ड़ी.पी सिंह, भूतपूर्व प्रशासनिक अधिकारी योगेन्द्र नारायण, एक्शनग्रुप फॉर पीपुल्स राईट टू इन्फार्मेशन के चीफ कोआर्डिनेटर अफजाल अंसारी, सामाजिक कार्यकर्ता शैलेन्द्र दुबं और पत्रकार ओम प्रकाश त्रिपाठी ने सूचना के अधिकार पर बड़ी बेबाकी से अपने-अपने विचार रखे।
इस अवसर पर भूतपूर्व न्यायमूर्ति कमलेश्वर नाथ ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम हमारा एक शस्त्र है और इसे राष्ट्रहित में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। समय से सूचना मिलना महत्वपूर्ण है और धारा 25 में प्रावधान है कि सरकार समय पर सूचना उपलब्ध कराएं। यह अधिनियम लोकतन्त्र को सशक्त और मजबूत करने की प्रक्रिया निधारिZत करता है। इसका गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। यह अधिनियम समय के साथ-साथ प्रभावी हो जाएगा। लोकतन्त्र में लोंगो की सहभागिता होनी चाहिए। लोकतन्त्र में सूचना का अधिकार इसलिए जरुरी है ताकि सरकार में जनता की सहभागिता हो सके और पारदर्शिता कायम भी रह सके। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि 1968 से लोकपाल बिल चर्चा में है लेकिन आज तक नहीं बन सका। सूचना का अधिकार अधिनियम में खामिया कम नहीं है जैसे कि शिकायतकर्ता सूचना आयुक्त के निर्णय के खिलाफ अपील नहीं कर सकता है। बस वह केवल हाईकोर्ट जा सकता है और हकीकत यह है कि सूचना आयोग में काम होता नहीं, मुकदमों का निस्तारण होता नहीं और आयोग के खुलने और बन्द होने या अधिकारी-कर्मचारी के आने जाने का कोई समय निधारिZत नहीं है।
इस अधिनियम पर पीएचडी करने वाले भूतपूर्व प्रशासनिक अधिकारी योगेन्द्र नारायण ने अपने विचार रखते हुए कहा कि इसमें व्यवस्था सबके सामने है, बस इसको समझने और क्रियान्चयन करने की जरुरत है। उन्होंने बताया कि 2002 में नौ राज्यों ने अपना सूचना के अधिकार का कानून बना लिया था लेकिन उसको लागू किया गया 2005 में वो भी सूचना का अधिकार अधिनियम का नाम देकर। सरकार का काम है कि इसके प्रति जनता में जागरुकता पैदा करे लेकिन जागरुकता पैदा करने के लिए एन जी ओ और मीडिया को ही आगे आना पड़ेगा और इस महत्वपूर्ण भूमिका को निभाना पड़ेगा। उन्होंने लोंगो की सुविधा के लिए सूचना अधिकारियों की एक उायरेक्टरी छपवाने का भी सुझाव दिया।
एक्शनग्रुप फॉर पीपुल्स राईट टू इन्फार्मेशन के चीफ कोआर्डिनेटर अफजाल अंसारी ने मेहमानों का स्वागत किया और अपने विचार रखते हुए कहा कि इस अधिनियम में पारदर्शिता, जिम्मेदारी और लोंगो की भागीदारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम के लागू होने से पूर्व जनता को विकास के कार्यों और सरकार के कार्यकलापों में हस्ताक्षेप का अधिकार नहीं था लेकिन इस अधिनियम ने हमको यह अधिकार दिलाया है। इससे भ्रप्टाचार कम होगा और साथ ही विकास के रास्ते खुलेगे लेकिन इसको सफल बनाने के लिए जरुरी है कि इसे ईमानदारी से लागू किया जाएं और लोगां में जागरुकता पैदा की जाएं।
न्यायमूर्ति डी पी सिंह ने कहा कि इस अधिनियम से सरकार के कार्यों में बदलाव आ सकता है। मुकदमों का समय पर निस्तारण होना चाहिए और धारा 25 के अनुसार सरकार को समय पर सूचना का जवाब देना चाहिए और लोगो का इसका राष्ट्रहित में प्रयोग करना चाहिए। सामाजिक कार्यकर्ता शैलेन्द्र दुबं ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम अपने आप में एक क्रान्ति है। इसका देशहित में एक हथियार के रुप में प्रयोग करना चाहिए।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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