Posted on 17 April 2010 by admin
लखनऊ- अमिताभ ठाकुर अध्यक्ष, नेशनल आर0टी0आई0 फोरम ने बताया है कि नेशनल आर0टी0आई0 फोरम द्वारा सभी भारतीय प्रबंध संस्थानों (आई0आई0एम0) के आर0टी0आई0 सम्बंधित वेबपृश्ठों को देखे जाने पर एक बात जो हर जगह अनुपस्थित मिली वह यह कि इनमें से किसी भी संस्थान द्वारा अपने यहॉ सहायक प्रोफेसर, एसोशियेट प्रोफेसर तथा प्रोफेसर पद से सम्बंधित न्यूनतम अह्रतायें नहीं दी गई हैं। साथ ही इन पदों पर चयन की प्रक्रिया एवं नियमावली का भी कहीं उल्लेख नहीं है। ये ऐसे तथ्य हैं जिनके सम्बंध में जानकारी आम नागरिक को दिये जाने से इनकी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता बढ़ने में सहायता मिलेगी। इस सम्बंध में विशेशकर आई0आई0टी0 कानपुर के बेवसाइट www.iitk.ac.in का उल्लेख किया जा सकता है जिसके डीन ऑफ फैकल्टी एफेयर्स वेबपेज www.iitk.ac.in/dofa पर अत्यन्त विस्तार से इनके विवरण प्रस्तुत किये गये हैं।
इसके अतिरिक्त आई0आई0एम0 लखनऊ के वेबसाइट में यह पाया गया है कि यह कई स्थानों पर अपूर्ण है। कर्मियों के अधिकार तथा कर्तव्य शीर्षक के अंर्तगत मात्र इतना लिखा हुआ है कि एमओए के अनुसार। किन्तु इसके साथ संचालक सोसायटी के मेमारेन्डम ऑफ अण्डरस्टैण्डिंग तथा नियमावलि संलग्न नहीं हैं। नीति (नार्म) शीर्षक के अन्तर्गत लिखा गया है- भारत सरकार तथा संस्थान द्वारा बनाये गये नीति (नार्म) के अनुसार किन्तु इन नियमों का प्रस्तुतिकरण नहीं है। नियम, विनियम, अनुदेश तथा निर्देश शीर्षक के अधीन खरीदारी मैनुअल जैसे कई अभिलेखों का उल्लेख है तथा यह कहा गया है कि संस्थान के वेवसाइट www.iiml.ac.in पर विस्तृत जानकारी प्राप्त होगी पर संस्थान के साइट पर इनमें से कई अभिलेख नहीं हैं।
सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 4 (1) के अनुसार सभी लोक अधिकारियों से यह अपेक्षित है कि इस अधिनियम के पारित होने के 120 दिनों के अन्दर सारी आवश्यक सूचनायें कम्प्यूटरिकृत करके सर्वसामान्य के लिये सुलभ कर देंगे तथा धारा 4 (2) के अनुसार लोक प्राधिकारी का यह उत्तरदायित्व है कि वह लगातार यह प्रयत्न करे कि वह इंटरनेट तथा अन्य माध्यमों से अधिक से अधिक सूचनायें इस प्रकार उपलब्ध करा दे कि आम जन को सूचना का अधिकार अधिनियम का कम से कम उपयोग करने की आवश्यकता हो। ऐसा प्रतीत होता है कि इन प्रकरणों में उपरोक्त नियमों के अनुपालन में कई रिक्तियॉ हैं। आर0टी0आई0 फोरम द्वारा अहमदाबाद, बंगलूरू, कोलकाता, लखनऊ , इन्दौर, कोजिकोड तथा शिलांग स्थित इन संस्थानों तथा मानव संसाधन विकास मन्त्रालय को इस सम्बंध में अवगत कराया गया है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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Posted on 13 April 2010 by admin
लखनऊ।भारतीय प्रबंध संस्थान, लखनऊ द्वारा संस्थान के पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम दाखिले की प्रक्रिया में भारी फेरबदल की बात बतायी जा रही है। प्राप्त जानकारी के अनुसार अब साक्षात्कार तथा ग्रुप डिसकसन हेतु तैयार किये गये टीम के सदस्यों के नाम दूसरे सदस्य परस्पर नहीं जान सकेंगे। कहा जा रहा है कि ऐसा होने पर पूरी प्रक्रिया कम पारदशीZ तथा अपनी सुविधाओं के अनुसार संचालित करने योग्य बन गई है जिसमें कभी भी टीम के सदस्य बदले जा सकते हैं। साथ ही अब अभ्यर्थियों को जी0डी0 तथा साक्षत्कार में दिये जा रहे अंकों का नियम भी परिवर्तित कर दिया गया है। पहले ये अंक परीक्षक टीम द्वारा मौके पर ही दिये जाते थे पर नये नियम के अनुसार अब सारी कापियॉ तथा दस्तावेज एकत्र कर संस्थान में लाये जायेंगे तथा इनका केन्द्रीय स्तर पर परीक्षण होगा। जानकारों का कहना है कि इस व्यवस्था में गड़बड़ी करना आसान हो जाता है जहॉ अन्त में सुविधानुसार अभ्यर्थियों के अंक कम या ज्यादा किये जा सकते है।
ये जानकारी नेशनल आर0टी0आई0 फोरम को मिली हैं। आर0टी0आई0 फोरम की ओर से इन पर गम्भीरता से ध्यान देते हुये अनुपम पाण्डेय द्वारा भारतीय प्रबंध संस्थान, लखनऊ के जन सूचना अधिकारी द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत सूचनायें मांगी गई हैं। साथ ही फोरम द्वारा मानव संसाधन मन्त्रालय से भी इस गम्भीर विशय पर तत्काल न्यायोचित कार्य करने हेतु पत्राचार किया गया है।
डा0 नूतन ठाकुर,
कनवेनर,
नेशनल आर0टी0आई0 फोरम, ने ये जानकारी द ी हैं।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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Posted on 12 April 2010 by admin
लखनऊ – सूचना आयोग अगर शिकायतकर्ता को तीस दिनों के अन्दर उसकी शिकायत पर सूचना नहीं देता है या उसको राहत देने में विफल रहता है तो सूचना का अधिकार का औचित्य ही समाप्त हो जाएगा। अगर सरकार इस अधिनियम के त्वरित क्रियान्वयन के प्रति गम्भीर है तो उसे निगरानी प्रणाली का सहारा लेना पड़ेगा। वैसे भी इस अधिनियम की धारा 25 के अन्र्तगत निगरानी प्रणाली की व्यवस्था भी की गई है लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण यह बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रहा है।
एक्शनग्रुप फॉर पीपुल्स राईट टू इन्फार्मेशन के छठवें राष्ट्रीय सम्मेलन एवूं कार्यशाला में “सूचना का अधिकार अधिनियम 2005: क्रियान्वयन, समस्याएं एवं समाधान´´ विषय पर आज यहां एनबीआरआई सभागार में वक्ताओं ने उक्त विचार व्यक्त किए। इस कार्यशाला में 200 से अधिक एन जी ओ और भूतपूर्व न्यायमूर्ति कमलेश्वर नाथ, न्यायमूर्ति ड़ी.पी सिंह, भूतपूर्व प्रशासनिक अधिकारी योगेन्द्र नारायण, एक्शनग्रुप फॉर पीपुल्स राईट टू इन्फार्मेशन के चीफ कोआर्डिनेटर अफजाल अंसारी, सामाजिक कार्यकर्ता शैलेन्द्र दुबं और पत्रकार ओम प्रकाश त्रिपाठी ने सूचना के अधिकार पर बड़ी बेबाकी से अपने-अपने विचार रखे।
इस अवसर पर भूतपूर्व न्यायमूर्ति कमलेश्वर नाथ ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम हमारा एक शस्त्र है और इसे राष्ट्रहित में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। समय से सूचना मिलना महत्वपूर्ण है और धारा 25 में प्रावधान है कि सरकार समय पर सूचना उपलब्ध कराएं। यह अधिनियम लोकतन्त्र को सशक्त और मजबूत करने की प्रक्रिया निधारिZत करता है। इसका गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। यह अधिनियम समय के साथ-साथ प्रभावी हो जाएगा। लोकतन्त्र में लोंगो की सहभागिता होनी चाहिए। लोकतन्त्र में सूचना का अधिकार इसलिए जरुरी है ताकि सरकार में जनता की सहभागिता हो सके और पारदर्शिता कायम भी रह सके। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि 1968 से लोकपाल बिल चर्चा में है लेकिन आज तक नहीं बन सका। सूचना का अधिकार अधिनियम में खामिया कम नहीं है जैसे कि शिकायतकर्ता सूचना आयुक्त के निर्णय के खिलाफ अपील नहीं कर सकता है। बस वह केवल हाईकोर्ट जा सकता है और हकीकत यह है कि सूचना आयोग में काम होता नहीं, मुकदमों का निस्तारण होता नहीं और आयोग के खुलने और बन्द होने या अधिकारी-कर्मचारी के आने जाने का कोई समय निधारिZत नहीं है।
इस अधिनियम पर पीएचडी करने वाले भूतपूर्व प्रशासनिक अधिकारी योगेन्द्र नारायण ने अपने विचार रखते हुए कहा कि इसमें व्यवस्था सबके सामने है, बस इसको समझने और क्रियान्चयन करने की जरुरत है। उन्होंने बताया कि 2002 में नौ राज्यों ने अपना सूचना के अधिकार का कानून बना लिया था लेकिन उसको लागू किया गया 2005 में वो भी सूचना का अधिकार अधिनियम का नाम देकर। सरकार का काम है कि इसके प्रति जनता में जागरुकता पैदा करे लेकिन जागरुकता पैदा करने के लिए एन जी ओ और मीडिया को ही आगे आना पड़ेगा और इस महत्वपूर्ण भूमिका को निभाना पड़ेगा। उन्होंने लोंगो की सुविधा के लिए सूचना अधिकारियों की एक उायरेक्टरी छपवाने का भी सुझाव दिया।
एक्शनग्रुप फॉर पीपुल्स राईट टू इन्फार्मेशन के चीफ कोआर्डिनेटर अफजाल अंसारी ने मेहमानों का स्वागत किया और अपने विचार रखते हुए कहा कि इस अधिनियम में पारदर्शिता, जिम्मेदारी और लोंगो की भागीदारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम के लागू होने से पूर्व जनता को विकास के कार्यों और सरकार के कार्यकलापों में हस्ताक्षेप का अधिकार नहीं था लेकिन इस अधिनियम ने हमको यह अधिकार दिलाया है। इससे भ्रप्टाचार कम होगा और साथ ही विकास के रास्ते खुलेगे लेकिन इसको सफल बनाने के लिए जरुरी है कि इसे ईमानदारी से लागू किया जाएं और लोगां में जागरुकता पैदा की जाएं।
न्यायमूर्ति डी पी सिंह ने कहा कि इस अधिनियम से सरकार के कार्यों में बदलाव आ सकता है। मुकदमों का समय पर निस्तारण होना चाहिए और धारा 25 के अनुसार सरकार को समय पर सूचना का जवाब देना चाहिए और लोगो का इसका राष्ट्रहित में प्रयोग करना चाहिए। सामाजिक कार्यकर्ता शैलेन्द्र दुबं ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम अपने आप में एक क्रान्ति है। इसका देशहित में एक हथियार के रुप में प्रयोग करना चाहिए।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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Posted on 29 March 2010 by admin
देहरादून – नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा सूचना आयोग का फैसला रद किए जाने के बाद बहुचर्चित पैसिफिक होटल नक्शा प्रकरण में अब नया मोड़ आ गया है। सूचना आयोग की डबल बेंच मामले की फिर से सुनवाई करेगी।
फरवरी 09 में राज्य सूचना आयोग ने तय समयावधि में पैसिफिक होटल के नक्शे की प्रति न देने पर एमडीडीए को आदेश दिया था कि वह प्रार्थी डा. प्रदीप दत्ता को पचास हजार रुपये मुआवजा दे। इसी मामले में आयोग ने पॉवर कॉरपोरेशन व उत्तराखंड जलसंस्थान के डीम्ड पी.आई.ओ पर भी दस-दस हजार का जुर्माना ठोका था। आयोग के फैसले से असहमत होते हुए एम.डी.डी.ए ने मुख्य सूचना आयुक्त डा. आरएस टोलिया के आदेश के विरूद्ध नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
आयोग की सिंगल बैंच द्वारा फैसला किए जाने के कारण हाईकोर्ट ने आयोग के इस निर्णय को रद कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा है कि आयोग की एकल पीठ का फैसला मान्य नहीं होगा। मुख्य सूचना आयुक्त डा. आरएस टोलिया ने बताया कि आयोग ने मामले की दोबारा सुनवाई करने का फैसला लिया है। अब आयोग की डबल बैंच मामले की सुनवाई करेगी। सुनवाई की तिथि भी निश्चित कर दी गई है। आयोग की ओर से एम.डी.डी.ए व प्रार्थी डा. प्रदीप दत्ता को फिर से नोटिस भेजे गए हैं।
2008 में सुभाष रोड निवासी डा. प्रदीप दत्ता ने सूचना कानून के तहत एम.डी.डी.ए से पैसिफिक होटल के नक्शे की प्रति मांगी थी। एम.डी.डी.ए निश्चित समयावधि में डा. दत्ता को सूचना नहीं दे पाया था। सूचना आयोग से मिली फटकार के बाद एम.डी.डी.ए उपाध्यक्ष ने दो कर्मचारियों को लापरवाही का दोषी मानते हुए निलंबित कर दिया था।
Posted on 27 March 2010 by admin
देहरादून – राज्य सूचना आयुक्त विनोद नौटियाल ने सूचनाएं देने में देरी, के दो अलग-अलग मामलों में पौड़ी और यमकेश्वर के खंड शिक्षा अधिकारी (बी.ई.ओ) कार्यालयों पर एक-एक हजार रुपये का हर्जाना ठोका है।
नटराज चौक ऋषिकेश निवासी किशोर मैठाणी ने अप्रैल 09 में जिला शिक्षा अधिकारी (डी.ई.ओ) दफ्तर से कुछ सूचनाएं मांगीं। जिला शिक्षा अधिकारी ने उन्हें पौड़ी जिले के सभी बी.ई.ओ को अंतरित कर दिया। जब विभागीय अपील के बावजूद पौड़ी और यमकेश्वर के बी.ई.ओ से समय पर सूचना नहीं मिली तो किशोर मैठाणी ने सूचना आयोग में अलग-अलग अपील कर दी। खंड शिक्षा अधिकारी व विभागीय अपीलीय अधिकारी (जिला शिक्षा अधिकारी) सूचना आयोग को विलंब का उचित कारण नहीं बता सके।
हालांकि यमकेश्वर के खंड शिक्षा अधिकारी ने दावा किया कि उन्होंने यू.पी.सी से सूचनाएं भेज दी थी लेकिन किशोर मैठाणी का कहना था कि उन्हें कोई सूचना नहीं मिली। राज्य सूचना आयुक्त विनोद नौटियाल ने दोनो खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालयों को विलंब का दोषी मानते हुए आदेश दिया कि वह अपीलार्थी को 10 दिन के भीतर एक-एक हजार रुपये मुआवजा उपलब्ध कराए और इसकी सूचना आयोग को भी दे।
Posted on 27 March 2010 by admin
सुलतानपुर(उत्तर प्रदेश)– राज्य सूचना आयुक्त सुभाश चन्द्र पाण्डेय आज जिले के सभी विभागों के जन सूचना अधिकारियों के साथ एक समीक्षा बैठक जिला कलेक्टेट के मीटिंग हाल किया। जिसमें जनता के द्वारा मांगी गई सूचना के बारे में सूचना न मुहैया कराने पर कड़ी फटकार लगायी। अपराह्न एक बजे राज्य सूचना आयुक्त ने प्रेस से मुखातिब हुए ।
प्रेस वार्ता में श्री पाण्डेय ने बताया कि प्रत्येक विभाग के जन सूचना अधिकारी को 30 दिन के अन्दर मांगी गई सूचनाओं को उपलब्ध कराना आवश्यक होता है। यदि सम्बन्धित विभाग मांगी गई सूचनाओं को 30 दिन के अन्दर उपलग्ध नहीं कराता है तो अपीलीय अधिकारी को इसकी शिकायत कर सकता हैं, अपीलीय अधिकारी के यहॉ से भी यदि 30 दिन के अन्दर सूचना नही उपलब्ध होती है तो राज्य सूचना आयोग को इस प्रकरण पर शिकायत की जा सकती है। पत्रकारों द्वारा पूछे जाने पर सूचना न उपलब्ध कराने के बारे में क्या कोई दण्डात्मक कार्यवाही का विधान है तो श्री पाण्डेय ने बताया कि सूचना न उपलब्ध करवाने पर जन सूचना अधिकार की धारा 20 के अन्र्तगत सम्बन्धित अधिकारी को रूप्या 250 प्रति दिन के हिसाब और अधिकतम रू0 25000 तक दण्ड दिया जा सकता है। एक प्रश्न का उत्तर देते हुए बताया कि सुलतानपुर जनपद जन सूचना के तहत शिकायत इस समय कुल 1253 वाद राज्य सूचना आयोग में हैं जिसमें ग्राम पंचायत अधिकारी, खण्ड विकास अधिकारी, पुलिस अधीक्षक, एवं जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को राज्य सूचना आयोग ने नोटिस भेजा है। दण्ड देने का चार चरण निश्चित किया गया है।
प्रथम दृश्टया सम्बन्धित अधिकारी को राज्य सूचना आयोग से नोटिस भेजी जायेगी, दसरे चरण में दण्डित करने की नोटिस भेजी जायेगी, तीसरे चरण में दण्डित करने की सूचना दी जायेगी और अन्त में दण्डादेश पारित कर दिया जायेगा।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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Posted on 23 March 2010 by admin
सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश)- विगत चार माह पहले विकास खण्ड दूबेपुर की ग्राम पंचायत भांई के सम्बन्ध में सूचना अधिकार के तहत इम्तियाज रिजवी सात विन्दुओं पर जानकारी मागीं थी जिसका प्रार्थना पत्र 20 नवम्बर 09 को ग्राम पंचायत सचिव को दिया था। परन्तु आज तक प्रार्थी को आज तक कोई सूचना नही प्राप्त हो सकी जिसके चलतें श्री रिजवी ने जिला पंचायतराज अधिकारी से जानकारी प्राप्त करने का मन बनाया।
प्रार्थी ने बताया कि जनहित में उठाये गये विन्दूओं के जबाब न मिलने से प्रार्थी बहुत छुब्ध है। श्री रिजवी ने कहा कि यदि जबाब नही मिला तो मान्नीय अदालत का सहारा लूगां परन्तु ग्राम पंचायत भांई के सम्बन्ध में मागी गई जानकारी प्राप्त करके ही रहूगां।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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Posted on 21 March 2010 by admin
लखनऊ – नेशनल आर.टी.आई फोरम द्वारा आयोजित सूचना का अधिकार अधिनियम और विधायकों का दृष्टिकोण विषयक संगोष्ठी में विचार व्यक्त करते हुए मलिहाबाद के विधायक सिद्धार्थ शंकर ने कहा कि सूचना का अधिकार कानून लाल फीताशाही की गिरफ्त में है जिसे शीघ्र दूर करने की जरूरत है।
विधायक सिद्धार्थ शंकर, भारतीय प्रबंध संस्थान लखनऊ (आई.आई.एम.एल) में नेशनल आरटीआई फोरम द्वारा आयोजित सूचना का अधिकार अधिनियम और विधायकों का दृष्टिकोण विषयक संगोष्ठी में विचार व्यक्त कर रहे थे। सुल्तानपुर के विधायक अनूप संडा ने बतौर सामाजिक कार्यकर्ता अपने अनुभव बताये। संडा ने कहा कि आर.टी.आई कार्यकर्ताओं को अब भी काफी देर से सूचनाएं हासिल होती हैं। संडा ने सूचना के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त दंडात्मक कार्यवाही करने की वकालत की।
बांदा के विधायक विवेक सिंह ने कहा कि इस कानून ने सामान्य नागरिकों को वह अधिकार दिलाया है जो पहले सिर्फ सांसदों और विधायकों तक सीमित था। उन्होंने कहा कि निरंकुश राजतंत्र पर नकेल कसने के लिए यह एक उपयोगी जरिया है। विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय ने सूचना अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को हुक्मरानों के लिए और बाध्यकारी बनाने पर जोर दिया।
नेशनल आर.टी.आई फोरम के अध्यक्ष व भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने संगोष्ठी में शामिल प्रतिभागियों को सूचना के अधिकार अधिनियम के विभिन्न पहलुओं की जानकारी दी। संगोष्ठी में आर.टी.आई कार्यकर्ता अखिलेश सक्सेना, प्रोजेक्ट विजय के महेंद्र सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता पूजा सिकेरा समेत कई अन्य लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये। नेशनल आर.टी.आई फोरम की संयोजक डा. नूतन ठाकुर ने संगोष्ठी में आए सभी लोगो को धन्यवाद ज्ञापित किया।
Posted on 20 March 2010 by admin
देहरादून (उत्तराखंड)-राज्य सूचना आयोग ने विलंब से सूचनाएं देने के मामले में सूचना प्रौद्योगिकी विकास प्राधिकरण (आईटीडीए)पर 5000 रुपये क्षतिपूर्ति आरोपित किया है। आयोग ने आईटीडीए को एक माह के भीतर सूचना प्रार्थी ए. कुमार को क्षतिपूर्ति की राशि का भुगतान करने के आदेश दिए हैं।
ईसी रोड निवासी ए. कुमार ने मई 2009 में आईटीडीए के लोक सूचनाधिकारी यानी समन्वयक वित्त एवं प्रशासन से 2007-08 में डेपुटेशन पर आए पीसी, पीसी(तकनीकी), व पीसी(वित्त एवं प्रशासन)के नाम, वेतन व अन्य भत्तों व सुविधाओं के बारे में, उनके रिपोर्टिग ढांचे, व उनके नियुक्ति व रिलीविंक प्रमाण पत्रों की प्रतियों की मांग की। मिली आधी-अधूरी सूचनाओं से असंतुष्ट होकर उन्होंने सूचना एवं प्रौद्योगिकी सचिव से विभागीय अपील की। अपील के निस्तारण से असंतुष्ट होकर ए. कुमार ने सूचना आयोग में अपील कर दी।
सुनवाई के दौरान जानकारी हुई कि आईटीडीए में प्रतिनियुक्ति पर आए विनोद कुमार तनेजा को लेकर प्रार्थी को कुछ आपत्ति है। इस पर आयोग ने कहा कि अगर इससे प्रार्थी को कोई हानि हुई है तो वह एनआईसी या आईटीडीए के सक्षम स्तर से शिकायत कर सकते हैं या अदालत की शरण लेकर वहां से राहत की मांग कर सकते हैं। आयोग ने प्रकरण में विलंब का स्पष्ट मामला मानते हुए आईटीडीए को आदेश दिया कि वह एक माह के भीतर प्रार्थी को पांच हजार रुपये क्षतिपूर्ति का भुगतान करे।
Posted on 18 March 2010 by admin
हरिद्वार – जन सूचना अधिकार(आईटीआई) के तहत सूचना उपलब्ध न कराने पर मुख्य सूचना आयुक्त आर.एस टोलिया ने पालिका के लोक सूचना अधिकारी (ईओ) बी.एल. आर्य एवं अपीलीय अधिकारी सिटी मजिस्ट्रेट अर्चना गहरवार को नोटिस भेजकर समस्त पत्रावलियों सहित तलब किया है।
आरोप है कि पालिकाध्यक्ष ने चयन समिति के बिना ही वर्ष 2008 में छह कर्मचारियों को प्रोन्नति देकर प्रथम श्रेणी लिपिक और दो दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित कर दिया था। कुछ कर्मचारियों ने शासन में इसकी शिकायत भी की थी। शासन के आदेश पर जिलाधिकारी ने जांच कराई और शासन को भेजी रिपोर्ट में प्रोन्नति व नियमित नियुक्तियों को शासनादेश के विरुद्ध करार दिया।
इस जांच के आधार पर सभासद दिनेश जोशी ने ईओ से सूचना अधिकारी के अन्तर्गत प्रोन्नति व नियमितीकरण केे सम्बंध में शासनादेश की प्रति उपलब्ध कराने का आवेदन किया। लेकिन पालिका के लोक सूचना अधिकारी बी.एल. आर्य ने सूचना उपलब्ध नहीं कराई। सभासद ने नगरपालिका की अपीलीय अधिकारी सिटी मजिस्ट्रेट अर्चना गहरवार के समक्ष अपील की। सिटी मजिस्ट्रेट ने तीन दिन में शासनादेश की प्रतियां उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे लेकिन दो माह तक भी ईओ ने आदेश का पालन नहीं किया। इसके बाद आवेदक राज्य सूचना आयोग में गया और आयोग ने 21 अप्रैल को दोनों को तलब किया है।